Poems on Nature in Hindi by Famous Poets:- आज का मनुष्य इतना गिर गया है कि वो अपने फायदे के लिए प्रकृति को काफी हद तक नुक्सान पहुँचाता है। हमें न ही तो खुद ऐसा करना चाहिए और न ही किसी को करने देना चाहिए। ये धरती हमारी माँ के समान है हमें इसकी सुरक्षा मिल-जुल कर करनी होगी।
आज हम कुछ इसी प्रकार की कविताएँ आपके सामने पेश करने जा रहे है जिनसे आपको प्रकृति, पर्यावरण का महत्त्व समझ में आएगा। आज की हमारी कविताओं का टाइटल है Poems on Nature in Hindi (पर्यावरण पर कविताएँ) – Hindi Poems on Environment. कविताएँ पसंद आने पर शेयर ज़रूर करे।
Small Poems on Nature in Hindi (#1)
फूलो का रंग देखो,
खुशियों के संग देखो,
दिल की तरंग देखो,
मन की उमंग देखो…
रिमझिम फुहार देखो,
सावन की बहार देखो,
नाचे नर और नार देखो,
सुन्दर ये संसार देखो…
धरती की मुस्कान देखो,
उपर से आसमां देखो,
सारे एक समान देखो,
अलौकिक ये जहान देखो…
मिलवर्तन भाईचारा देखो,
सूर्य चाँद सितारा देखो,
एकत्व का पसारा देखो,
अद्भुत ये नजारा देखो…
खेतो की हरियाली देखो,
कही भरी कही खाली देखो,
मुख पर आभा लाली देखो,
जीवन में खुशहाली देखो…
This Poem credit goes to Deepak Kumar Deep Music Lovers
Poems on Nature in hindi for class 10 (#2)
सतपुड़ा के घने जंगल,
नींद में डूबे हुए से,
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड़ ऊँचे और निचे,
चुप खड़े है आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है,
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमे,
धंस न पाती हवा जिनमे,
सतपुड़ा के घने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे से,
पंक दल में पीला पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलों इनको दल सको तो,
ये घिनौने, घने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
अटपटी-उलझी लताये,
डालियों को खीच खाए,
पैर को पकडे अचानक,
प्राण को कस ले कपाए।
बला की काली लताये,
लताओं के बने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
मकड़ियों के बाल मुहं पर,
और सर के बाल मुहं पर,
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुहं पर।
Self Confidence Poems in Hindi
वात-झंझा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
अजगरो से भरे जंगल,
अगम, गति से परे जंगल,
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कंप से कनकने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
इन वनों को खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर,
पाल कर निश्चित बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोपडी पर फूल डाले,
गोड तगड़े और काले।
जब की होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती।
गूँज उठते ढोल उनके,
गीत इनके बोल इनके,
सतपुड़ा के घने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
जागते अंगड़ाईयाँ में,
खोह-खड्डों खाइयो में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल।
मेरु वाला, शेष वाला,
शम्भू और सुरेश वाला,
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल,
धँसो इनमे डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है।
उतारकर बहते अनेको,
कल-कथा कहते अनेको,
नदी निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरण दल,
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल,
ऊँघते अनमने जंगल।
This Poem credit goes to Spirit Up
Poems on Nature in Hindi for Class 8 (#3)
कहीं सुबह होती है ऐसी,
जैसे आसमान जमीन पर हो आया,
कहीं खुशियों ने डेरा डाला,
जैसे खुशियों में दामन मेरा भर डाला।
कहीं दुखों की होती बरसात,
जैसे सावन ना आया हो अब की बार,
ऐसी जिंदगी जीते हम सारे,
तभी तो कहते हैं इसको हम प्यारे,
यह कौन है, जिसने रंग बरसाया,
कभी खुशी, तो कभी गम है लाया।
वह है कौन,
वह कहां छिपा है,
जिसे ढूंढते हैं हम सब प्यारे,
वह है यही पास हमारे,
और कहां मिलेगा तुमको प्यारे।
प्रकृति से बढ़कर ना दूजा होवे,
जो रंग तरह-तरह के दिखावे,
पल में पतझड़,
तो पल में सावन वो लावे,
ऐसे ही दिनों से साल में पहुंचावे,
प्रकृति के रंग अनोखे बड़े हैं,
हम तो बचपन से जवानी की ओर बढ़े हैं।
बढ़ते-बढ़ते हम मर जावें,
पर प्रकृति खत्म होने को ना आवे,
ऐसे जीवन बीतता जावे,
प्रकृति हमेशा अपना रंग बरसावे,
दुनिया चाहे बदलती जावे,
पर प्रकृति हमेशा अपने रंग भिकरावे।
This Poem credit goes to The Classical Hindi Poetry
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आपको ये कविता Poems on Nature in Hindi कैसी लगी। इस Hindi Poem on Prakriti Nature को अपने मित्रो के साथ साँझा करना बिलकुल भी ना भूले।